शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

सोनभद्र


उत्तर प्रदेष के दक्षिण व पूर्वी सीमा क्षेत्र में स्थित सृजित जनपद सोनभद्र अपनी प्राकृतिक सम्पदाओं के विपुल भण्डारण, रिहन्द जलाषय व ऊर्जा के श्रोत केन्द्र के रूप में विष्व पटल पर अपना स्थान बना चुका हैं। जनपद की कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 664522 हेक्टेयर है जिसमें 3,69,973.3 है भूमि वन भूमि जो कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 61.2 प्रतिषत है। कुल वन क्षेत्रफल का 40 प्रतिषत भू-भाग वन क्षेत्र सर्वें प्राक्रियो के बाद वन क्षेत्र से अलग हो जाने की सम्भावना है। 

जनसंख्या की आधे से ज्यादा जनसंख्या वनों पर आधारित है तथा बढ़ती जनसंख्या के दबाव, क्षेत्र में हो रहे अनियमित, अनियमित विकाष कार्यो व सर्वे प्रक्रिया के नाम पर, एक बडे़ पैमाने पर वनों व वन क्षेत्र का विनाष हुआ है। इस विनाष से सबसे ज्यादा प्रभावित यहां के मूल निवासी हुए हैं जो रिहन्द जलाषय के निर्माण से पूर्व इस क्षेत्र में निवास करते थे, लेकिन रिहन्द जलाषय के निमार्ण के बाद यहां के निवासियों को पुनर्वास का दंष झेलना पड़ा, यह पुर्नवास एक बार ही नहीं वरन् दो से तीन बार झेलना पड़ा। यह पुनर्वास जितनी बार भी हुआ उनकी परेषानियाँ उतना ही बिकराल रूप धारण करती चली गयी। 

औद्योगिक संस्थानाओं के निमार्ण के साथ ही कुछ लोगों को नौकारियाँ दे दी गयी उनमें वे लोग थे जो उच्च जाति के या फिर अन्य पिछड़ी जाती के लोग थे, जबकि सबसे ज्यादा जनसंख्या अनसूचीत जाति या अनसूचित जनजाति की थी जो आज भी अपने पूराने वनवासी तरीके से अपना जीवन -यापन कर रहे हंै। ऊर्जांचल का भाट क्षेत्र जो अपने मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है यहां के निवासी अपना जीवन-यापन काफी कठिनाइयों से व्यतित कर रहे हैं। देष में कई बार चुनाव हुआ तथा कई बार देष के नेता बदले, लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। जब चुनाव नजदीक आता है तो बरसाती मेढ़क की तरह सभी नेता उनकी समस्याओं को जानने के नाम पर उनका मजाक उड़ते नजर आते हैं, कहने के लिए वे उनके नुमांइदे होते हैं जेा चुनाव बितने के बाद दिखाई तक नहीं देते। 

भाट क्षेत्र में निवास कर रहे लोगों की समस्याओं को देखे तो ऐसा लगता है कि ये लोग आज भी अपना जीवन आदिमानव की तरह व्यतित कर रहे हैं। विकास के नाम पर जो भी चीजें इनको मिलनी चाहिए थी वह आज तक नहीं मिली। यहां जाने के लिए आप को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा। बच्चों को पढ़ने के लिए यहां न तो स्कूल है और न ही पीने के लिए षुद्ध पानी की कितनी समस्या है, यहां इस बात से अंदाजा लागया जा सकता है कि लोगों को चुओं से पानी पीना पड़ता है तो सोचिए पषु का क्या हाल होता होगा, जबकि यहां के मूल निवासियांे का जीवन-यापन करने का मुख्य साधन पषुपाल एवं मक्के की खेती है। 

बरसात के समय में अच्छी बारीस न हो तो कृर्षि का मुख्य साधन भी बरबाद हो जाता है। जिससे इनके सामने बिकराल समस्या खड़ी हो जाती है। सरकारी महकमा इनका सुध न लिया है न लेने वाला है, पषु प्यास से मरते हैं और यहां की जनता भूख से। सरकार की तरफ से काफी योजनाएं आयी, लेकिन उन तक पहुची नहीं या फिर उसमें भी सरकारी महकमें द्वारा इतना लूट-खसोट की गयी कि जितनी मात्रा में उनको संसाधन प्राप्त होने चाहिए थे उन संसाधनों का आधा भाग भी उन तक नहीं पहुच पाता। कुछ ऐसी घटनाएं सामने आयी है जिसमें सरकारी महकमें द्वारा खुली लूट देखने को मिली। मनरेगा में कार्य कर चुके मजदूरों का बकाया आज तक पैसा उनकों नहीं मिला जिससे सरकारी कार्यों के तरफ से इनका मन उब गया है। पैसे के लिए मजदूरों ने हर सरकारी चैकठ पर दस्त दिया, लेकिन उनकी फरियाद सुनने वाला कोई नहीं है। आज भी पैसों के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है ऐसी स्थिती यहां के दबे कुचले लोग नक्सली बनने के राह पर अग्रसर होने की स्थिती पैदाकर दी हैं। पानी के अभाव में यहां के लोग रिहन्द जलाषय का जल पीने के लिए बाध्य हैं जो पहले ही काफी प्रदूषित हो गया है।

रिहन्द जलाषय में पायी जाने वाली प्रदुषण कि मात्रा इसी बात से पता लगायी जा सकती है कि फ्लोराईड के कारण काफी मात्रा में लोग हड्डी सम्बन्धि रोगों से ग्रस्त हैं। पारा की मात्रा रिहन्द जलाषय में इस हद तक है कि जलाषय की मछलीयों तक मे पारा विद्यमान है जो यहां के निवासियों के पाचन तंत्र को विकृत करने में काफी सहायक है।

सूत्रों की माने तो सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान जो गरीबों को भोजन से लेकर रौषनी तक के साधन उपलब्ध कराती है वह भी भष्ट्राचार की भंेट चढ़ चुकी है। कोटेदारों द्वारा मनमाने तरीके से कोटा बांटने व दो से तीन महिनों में एक बार कोटे को खुलना और कोटे के सामनों का खुले बाजार में काला बाजारी से यहां के लोगों को मिलने वाले संसाधनों का कोई भी लाभ नहीं मिल रहा है। ऐसी स्थिती में यहां के आदिवासियों एवं वनवासियों के सामने अपने हक को पाने के लिए नक्सली बनने हेतु बाध्य कर रही हैं। अगर सरकार इनकी समस्याओं की तरफ ध्यान नहीं देती हैं तो ऐसे नक्सलियों की संख्या में भारी इजाफा होगा जो देष के लिए घातक साबित होगा तथा सरकार इनकों समाज के मुख्य धारा से जोड़ने में असमर्थ हो जायेगी। इसके साथ ही देष का भविष्य भी अधंकारमय हो जायेगा। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें